रविवार, 23 अगस्त 2009
भारतीय रेल पत्रिका का स्वर्णजयंती वर्ष
रेल प्रशासन, रेलकर्मियों और रेल उपयोगकर्ताओं के बीच भारतीय रेल पत्रिका एक मजबूत संपर्क-सूत्र का काम कर रही है। भारतीय रेल पत्रिका का पहला अंक 15 अगस्त 1960 को प्रकाशित हुआ था। इस पत्रिका की शुरूआत के पीछे तत्कालीन रेल मंत्री स्व.श्री लाल बहादुर शास्त्री तथा बाबू जगजीवन राम का विशेष प्रयास था। इस पत्रिका के शुरूआती दौर में संपादक मंडल के सदस्य थे- श्री डी.सी. बैजल, सदस्य,(कर्मचारी वर्ग) रेलवे बोर्ड, श्री डी.पी.माथुर, निदेशक वित्त, श्री आर.ई.डी. सा, सचिव, रेलवे बोर्ड, श्री जी.सी.मीरचंदानी, सह-निदेशक,जन-संपर्क, श्री राममूर्ति सिंह, हिंदी अफसर, रेलवे बोर्ड, श्री कृष्ण गुलाटी,संपादक तथा श्री राम चंद्र तिवारी, सहायक संपादक (हिंदी)। मौजूदा समय में संपादक मंडल में श्री एस.एस.खुराना, अध्यक्ष रेलवे बोर्ड, श्रीमती सौम्या राघवन, वित्त आयुक्त,श्री के.बी.एल.मित्तल, सचिव, निदेशक (सूचना एवं प्रचार) रेलवे बोर्ड हैं। पत्रिका के मौजूदा संपादक का दायित्व श्री अरविंद कुमार सिंह (परामर्शदाता, भारतीय रेल) तथा उनकी टीम संभाल रही है। श्री सिंह को राष्ट्रपति तथा हिंदी अकादमी दिल्ली समेत कई संस्थाओं द्वारा पत्रकारिता के कई शीर्ष पुरस्कारों से सममानित किया जा चुका है और वे एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम में भी पढ़ाए जाते हैं।
प्रवेशांक से लेकर लंबे दौर तक पत्रिका को गरिमापूर्ण स्थान तक पहुंचाने का दायित्व हिंदी के विख्यात विद्वान और लेखक रामचंद्र तिवारी ने संभाला था। भारतीय रेल के संपादकों में श्री तिवारी के अलावा श्री प्रमोद कुमार यादव ने काफी सराहनीय योगदान दिया। भारतीय रेल पत्रिका तथा उसके संपादकों को पत्रकारिता और साहित्य में विशेष योगदान के लिए उ.प्र. हिंदी संस्थान तथा हिंदी अकादमी दिल्ली समेत कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया था।
इस पत्रिका के प्रवेशांक से लंबे समय तक वार्षिक चंदे की दर सर्व साधारण के लिए छह रुपए रखी गयी थी, जबकि रेलकर्मियों के लिए चार रुपए की रियायती दर थी। एक अंक का मूल्य था 60 नए पैसे। पत्रिका का संपादकीय कार्यालय शुरूआत में 165 पी.ब्लाक रायसीना रोड, नयी दिल्ली था। उस समय रेल भवन का निर्माण पूरा नहीं हुआ था। 30 दिसंबर 1960 को जब रेल भवन का उद्घाटन किया था उस समय तक भारतीय रेल पत्रिका के पांच अंक प्रकाशित हो चुके थे। त्रिका का पहला विशेषांक रेल सप्ताह अंक 1961 के नाम से अप्रैल 1961 में प्रकाशित किया गया।
पत्रिका के शुरूआत में स्थाई स्तंभ थे संपादकीय, सुना आपने, रेलों के अंचल से, भारतीय रेलें सौ साल पहले और अब, कुछ विदेशी रेलों से,क्रीडा जगत में रेलें, मासिक समाचार चयन,रेलवे शब्दावली और हिंदी पर्याय, कविता, कहानी। इसी के साथ पत्रिका को रोचक बनाने के लिए भगत जी कार्टून के माध्यम से भी रेलकर्मियों और यात्रियों दोनों के जागरण का प्रयास किया गया। आगे कुछ और स्तंभ शुरू किए गए तथा पत्रिका दिनों दिन निखरने लगी।
जहां तक लेखकों का सवाल है तो पहले अंक में ही भारतीय रेल ने साफ घोषणा की थी कि बाहर के लेखकों की रचनाएं भी स्वीकार की जाएंगी। इस पत्रिका के प्रतिष्ठित लेखकों में स्व.श्री विष्णु प्रभाकर, श्री कमलेश्वर, डा. प्रभाकर माचवे, श्री पी.डी. टंडन, श्री रतनलाल शर्मा, श्री श्रीनाथ सिंह, श्री रामदरश मिश्र, डा.शंकर दयाल सिंह, श्री विष्णु स्वरूप सक्सेना, डा. महीप सिंह, श्री यशपाल जैन, श्री राजेंद्र अवस्थी, सुश्री आशारानी व्होरा, श्री बेधड़क बनारसी,श्री शैलेन चटर्जी, श्री लल्लन प्रसाद व्यास, श्री शेर बहादुर विमलेश, डा.गौरीशंकर राजहंस, श्री अक्षय कुमार जैन, श्री प्रेमपाल शर्मा, श्री आर.के. पचौरी, डा. दिनेश कुमार शुक्ल, श्री उदय नारायण सिंह, श्री अरविंद घोष, श्री देवेंद्र उपाध्याय, श्री विमलेश चंद, श्री कौटिल्य उदियानी, श्री देवकृष्ण व्यास, शार्दूल विक्रम गुप्त, .जी.जोगलेकर, शशिधर खां, लक्ष्मीशंकर व्यास, मंजु नागौरी से लेकर यादवेंद्र शर्मा चंद्र समेत हिंदी के कई विद्वान लेखक और पत्रकार जुड़े रहे हैं। भारतीय रेल में 1960 के बाद के सारे रेल बजट तथा उन पर सारगर्भित समीक्षाएं विस्तार से प्रकाशित हुई हैं। इस दौर की सभी प्रमुख रेल परियोजनाओं, खास निर्णयों और महत्वपूर्ण घटनाओं को भारतीय रेल में प्रमुखता से कवरेज दिया गया। इसी नाते खास तौर पर अध्येताओं तथा अनुसंधानकर्ताओं के लिए यह पत्रिका एक अनिवार्य संदर्भ भी बन गयी है।
भारतीय रेल पत्रिका का स्वर्णजयंती वर्ष
रेल प्रशासन, रेलकर्मियों और रेल उपयोगकर्ताओं के बीच भारतीय रेल पत्रिका एक मजबूत संपर्क-सूत्र का काम कर रही है। भारतीय रेल पत्रिका का पहला अंक 15 अगस्त 1960 को प्रकाशित हुआ था। इस पत्रिका की शुरूआत के पीछे तत्कालीन रेल मंत्री स्व.श्री लाल बहादुर शास्त्री तथा बाबू जगजीवन राम का विशेष प्रयास था। इस पत्रिका के शुरूआती दौर में संपादक मंडल के सदस्य थे- श्री डी.सी. बैजल, सदस्य,(कर्मचारी वर्ग) रेलवे बोर्ड, श्री डी.पी.माथुर, निदेशक वित्त, श्री आर.ई.डी. सा, सचिव, रेलवे बोर्ड, श्री जी.सी.मीरचंदानी, सह-निदेशक,जन-संपर्क, श्री राममूर्ति सिंह, हिंदी अफसर, रेलवे बोर्ड, श्री कृष्ण गुलाटी,संपादक तथा श्री राम चंद्र तिवारी, सहायक संपादक (हिंदी)। मौजूदा समय में संपादक मंडल में श्री एस.एस.खुराना, अध्यक्ष रेलवे बोर्ड, श्रीमती सौम्या राघवन, वित्त आयुक्त,श्री के.बी.एल.मित्तल, सचिव, निदेशक (सूचना एवं प्रचार) रेलवे बोर्ड हैं। पत्रिका के मौजूदा संपादक का दायित्व श्री अरविंद कुमार सिंह (परामर्शदाता, भारतीय रेल) तथा उनकी टीम संभाल रही है। श्री सिंह को राष्ट्रपति तथा हिंदी अकादमी दिल्ली समेत कई संस्थाओं द्वारा पत्रकारिता के कई शीर्ष पुरस्कारों से सममानित किया जा चुका है और वे एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम में भी पढ़ाए जाते हैं।
प्रवेशांक से लेकर लंबे दौर तक पत्रिका को गरिमापूर्ण स्थान तक पहुंचाने का दायित्व हिंदी के विख्यात विद्वान और लेखक रामचंद्र तिवारी ने संभाला था। भारतीय रेल के संपादकों में श्री तिवारी के अलावा श्री प्रमोद कुमार यादव ने काफी सराहनीय योगदान दिया। भारतीय रेल पत्रिका तथा उसके संपादकों को पत्रकारिता और साहित्य में विशेष योगदान के लिए उ.प्र. हिंदी संस्थान तथा हिंदी अकादमी दिल्ली समेत कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया था।
इस पत्रिका के प्रवेशांक से लंबे समय तक वार्षिक चंदे की दर सर्व साधारण के लिए छह रुपए रखी गयी थी, जबकि रेलकर्मियों के लिए चार रुपए की रियायती दर थी। एक अंक का मूल्य था 60 नए पैसे। पत्रिका का संपादकीय कार्यालय शुरूआत में 165 पी.ब्लाक रायसीना रोड, नयी दिल्ली था। उस समय रेल भवन का निर्माण पूरा नहीं हुआ था। 30 दिसंबर 1960 को जब रेल भवन का उद्घाटन किया था उस समय तक भारतीय रेल पत्रिका के पांच अंक प्रकाशित हो चुके थे। त्रिका का पहला विशेषांक रेल सप्ताह अंक 1961 के नाम से अप्रैल 1961 में प्रकाशित किया गया।
पत्रिका के शुरूआत में स्थाई स्तंभ थे संपादकीय, सुना आपने, रेलों के अंचल से, भारतीय रेलें सौ साल पहले और अब, कुछ विदेशी रेलों से,क्रीडा जगत में रेलें, मासिक समाचार चयन,रेलवे शब्दावली और हिंदी पर्याय, कविता, कहानी। इसी के साथ पत्रिका को रोचक बनाने के लिए भगत जी कार्टून के माध्यम से भी रेलकर्मियों और यात्रियों दोनों के जागरण का प्रयास किया गया। आगे कुछ और स्तंभ शुरू किए गए तथा पत्रिका दिनों दिन निखरने लगी।
जहां तक लेखकों का सवाल है तो पहले अंक में ही भारतीय रेल ने साफ घोषणा की थी कि बाहर के लेखकों की रचनाएं भी स्वीकार की जाएंगी। इस पत्रिका के प्रतिष्ठित लेखकों में स्व.श्री विष्णु प्रभाकर, श्री कमलेश्वर, डा. प्रभाकर माचवे, श्री पी.डी. टंडन, श्री रतनलाल शर्मा, श्री श्रीनाथ सिंह, श्री रामदरश मिश्र, डा.शंकर दयाल सिंह, श्री विष्णु स्वरूप सक्सेना, डा. महीप सिंह, श्री यशपाल जैन, श्री राजेंद्र अवस्थी, सुश्री आशारानी व्होरा, श्री बेधड़क बनारसी,श्री शैलेन चटर्जी, श्री लल्लन प्रसाद व्यास, श्री शेर बहादुर विमलेश, डा.गौरीशंकर राजहंस, श्री अक्षय कुमार जैन, श्री प्रेमपाल शर्मा, श्री आर.के. पचौरी, डा. दिनेश कुमार शुक्ल, श्री उदय नारायण सिंह, श्री अरविंद घोष, श्री देवेंद्र उपाध्याय, श्री विमलेश चंद, श्री कौटिल्य उदियानी, श्री देवकृष्ण व्यास, शार्दूल विक्रम गुप्त, .जी.जोगलेकर, शशिधर खां, लक्ष्मीशंकर व्यास, मंजु नागौरी से लेकर यादवेंद्र शर्मा चंद्र समेत हिंदी के कई विद्वान लेखक और पत्रकार जुड़े रहे हैं। भारतीय रेल में 1960 के बाद के सारे रेल बजट तथा उन पर सारगर्भित समीक्षाएं विस्तार से प्रकाशित हुई हैं। इस दौर की सभी प्रमुख रेल परियोजनाओं, खास निर्णयों और महत्वपूर्ण घटनाओं को भारतीय रेल में प्रमुखता से कवरेज दिया गया। इसी नाते खास तौर पर अध्येताओं तथा अनुसंधानकर्ताओं के लिए यह पत्रिका एक अनिवार्य संदर्भ भी बन गयी है।
शनिवार, 22 अगस्त 2009
भारतीय रेल पत्रिका
भारतीय रेल पत्रिका का स्वर्ण जयंती वर्ष
नई दिल्ली । विशेष संवाददातारेल मंत्रालय (रेलवे बोर्ड) द्वारा प्रकाशित एकमात्र लोकप्रिय मासिक हिंदी पत्रिका भारतीय रेल अगस्त 2009 को अपनी गौरवशाली यात्रा के स्वर्ण जयंती वर्ष में प्रवेश कर रही है। बीते पांच दशकों में इस पत्रिका ने रेल कर्मियों के साथ अन्य पाठक वर्ग में भी अपनी एक विशिष्ट पहचान कायम की है। इस लंबी अवधि के दौरान जहां भारत सरकार की कई पत्रिकाएं बंद हो गयीं या बहुत सीमित दायरे तक पहुंच गयीं,वहीं भारतीय रेल पत्रिका लगातार न सिर्फ निकल रही है बल्कि इसकी साज-सज्जा, विषय सामग्री और मुद्रण में भी निखार आया है। इसके पाठकों की संख्या में भी निरंतर वृद्धि हुई है। रेलों में हिंदी के प्रचार-प्रसार में इस पत्रिका का ऐतिहासिक योगदान रहा है। रेलों से संबंधित तकनीकी विषयों की सरल-सहज भाषा में जानकारी सुलभ कराने में इस पत्रिका का ऐतिहासिक योगदान रहा है।
तब और अब
रेल प्रशासन, रेलकर्मियों और रेल उपयोगकर्ताओं के बीच भारतीय रेल पत्रिका एक मजबूत संपर्क-सूत्र का काम कर रही है। भारतीय रेल पत्रिका का पहला अंक 15 अगस्त 1960 को प्रकाशित हुआ था। इस पत्रिका की शुरूआत के पीछे तत्कालीन रेल मंत्री स्व.श्री लाल बहादुर शास्त्री तथा बाबू जगजीवन राम का विशेष प्रयास था। उस समय वर्ष 1960-61 के वित्तीय वर्ष में भारतीय रेल पत्रिका के लिए प्रचार और विविध व्यय शीर्ष से 25,000 रुपए का आवंटन किया गया था। इस पत्रिका के शुरूआती दौर में 1960 में इसके संपादक मंडल के सदस्य थे- श्री डी.सी. बैजल, सदस्य,(कर्मचारी वर्ग) रेलवे बोर्ड, श्री डी.पी.माथुर, निदेशक वित्त, श्री आर.ई.डी. सा, सचिव, रेलवे बोर्ड, श्री जी.सी.मीरचंदानी, सह-निदेशक,जन-संपर्क, श्री राममूर्ति सिंह, हिंदी अफसर, रेलवे बोर्ड, श्री कृष्ण गुलाटी,संपादक तथा श्री राम चंद्र तिवारी, सहायक संपादक (हिंदी)। मौजूदा समय में संपादक मंडल में श्री एस.एस.खुराना, अध्यक्ष रेलवे बोर्ड, श्रीमती सौम्या राघवन, वित्त आयुक्त,श्री के.बी.एल.मित्तल, सचिव, निदेशक (सूचना एवं प्रचार) रेलवे बोर्ड हैं। पत्रिका के मौजूदा संपादक का दायित्व श्री अरविंद कुमार सिंह (परामर्शदाता, भारतीय रेल) तथा उनकी टीम संभाल रही है। श्री सिंह को राष्ट्रपति तथा हिंदी अकादमी दिल्ली समेत कई संस्थाओं द्वारा पत्रकारिता के कई शीर्ष पुरस्कारों से सममानित किया जा चुका है और वे एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम में भी पढ़ाए जाते हैं। प्रवेशांक से लेकर लंबे दौर तक पत्रिका को गरिमापूर्ण स्थान तक पहुंचाने का दायित्व हिंदी के विख्यात विद्वान और लेखक रामचंद्र तिवारी ने संभाला था। भारतीय रेल के संपादकों में श्री तिवारी के अलावा श्री प्रमोद कुमार यादव ने काफी सराहनीय योगदान दिया। भारतीय रेल पत्रिका तथा उसके संपादकों को पत्रकारिता और साहित्य में विशेष योगदान के लिए उ.प्र. हिंदी संस्थान तथा हिंदी अकादमी दिल्ली समेत कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया था।इस पत्रिका के प्रवेशांक से लंबे समय तक वार्षिक चंदे की दर सर्व साधारण के लिए छह रुपए रखी गयी थी जबकि रेलकर्मियों के लिए चार रुपए की रियायती दर रखी गयी थी। एक अंक का मूल्य था 60 नए पैसे। पत्रिका का संपादकीय कार्यालय शुरूआत में 165 पी.ब्लाक रायसीना रोड, नयी दिल्ली था। उस समय रेल भवन का निर्माण पूरा नहीं हुआ था। इस पत्रिका के प्रकाशन के अवसर पर तत्कालीन रेल मंत्री श्री जगजीवन राम, रेल उपमंत्री श्री शाहनवाज खां तथा सं. वै.रामस्वामी के बहुत सारगर्भित संदेश भी प्रकाशित किए गए थे।पत्रिका के पहले संपादकीय में रेल कर्मचारियों की वेतन वृद्धि पर रोशनी डाली गयी थी साथ ही आत्म-निवेदन भी छपा था जिसमें पत्रिका के बारे में इन शब्दों में कुछ तथ्य रखे गए थे-चौदहवें आजादी दिवस के शुभ अवसर पर देश की राजभाषा हिंदी में प्रकाशित इस पत्रिका भारतीय रेल का यह प्रयास रहेगा कि वस्तुस्थिति का सही तथा सुस्पष्ट चित्र उपस्थित करके रेलों तथा जनता के बीच सहयोग बढ़ायें। अधिकांश रेल कर्मचारी तथा बहुसंख्यक जनता अंग्रेजी नहीं समझ सकती इसलिए उनके काम की बात उनकी अपनी ही भाषा में पहुंचाने की इच्छा ही इसके प्रकाशन की मुख्य प्रेरणा रही है। सहयोग के लिए दोनो पक्षों द्वारा एक- दूसरे की बात समझना परमावश्यक होता है। भारतीय रेल का सदैव यह प्रयत्न होगा कि वह रेलों सम्बंधी आधिकारिक सामग्री उपस्थित करके यह बता सकें कि रेलें किन-किन मुश्किलों का सामना करते हुए जनता की सेवा कर रही हैं और जनता किस प्रकार सहयोग देकर उनकी सहायता कर सकती है तथा यात्रियों की सुविधा एवं कर्मचारियों के कल्याण के लिए क्या कुछ किया जा रहा है।पत्रिका के शुरूआत में स्थाई स्तंभ थे संपादकीय, सुना आपने, रेलों के अंचल से, भारतीय रेलें सौ साल पहले और अब, कुछ विदेशी रेलों से,क्रीडा जगत में रेलें, मासिक समाचार चयन,रेलवे शब्दावली और हिंदी पर्याय, कविता, कहानी। इसी के साथ पत्रिका को रोचक बनाने के लिए भगत जी कार्टून के माध्यम से भी रेलकर्मियों और यात्रियों दोनों के जागरण का प्रयास किया गया। आगे कुछ और स्तंभ शुरू किए गए तथा पत्रिका दिनों दिन निखरने लगी। जहां तक लेखकों का सवाल है तो पहले अंक में ही भारतीय रेल ने साफ घोषणा की थी कि बाहर के लेखकों की रचनाएं भी स्वीकार की जाएंगी। इस पत्रिका के प्रतिष्ठित लेखकों में स्व.श्री विष्णु प्रभाकर, श्री कमलेश्वर, श्री रस्कीन बांड, डा. प्रभाकर माचवे, श्री पी.डी. टंडन, श्री रतनलाल शर्मा, श्री श्रीनाथ सिंह, श्री रामदरश मिश्र, डा.शंकर दयाल सिंह, श्री विष्णु स्वरूप सक्सेना, डा. महीप सिंह, श्री यशपाल जैन, श्री राजेंद्र अवस्थी, सुश्री आशारानी व्होरा, श्री बेधड़क बनारसी, श्री शैलेन चटर्जी, श्री लल्लन प्रसाद व्यास, श्री शेर बहादुर विमलेश, डा.गौरीशंकर राजहंस, श्री अक्षय कुमार जैन, श्री प्रेमपाल शर्मा, श्री आर.के. पचौरी, डा. दिनेश कुमार शुक्ला, श्री उदय नारायण सिंह, श्री अरविंद घोष, श्री देवेंद्र उपाध्याय, श्री विमलेश चंद, श्री राधाकांत भारती, श्री दुर्गाशंकर त्रिवेदी, श्री कौटिल्य उदियानी, श्री देवकृष्ण व्यास, शार्दूल विक्रम गुप्त, के.जी.जोगलेकर, शशिधर खां, लक्ष्मीशंकर व्यास, मंजु नागौरी से लेकर यादवेंद्र शर्मा चंद्र समेत हिंदी के कई विद्वान लेखक और पत्रकार जुड़े रहे हैं। आचार्य जे.बी.कृपलानी, श्री के.के. बिड़ला और श्री सुनील दत्त समेत अन्य कई हस्तियों के लेख भी भारतीय रेल में छपे हैं। इतना ही नहीं पत्रिका की शुरूआत से ही लेखकों के लिए उचित पारिश्रमिक देने की भी व्यवस्था भी रही है। इस पत्रिका के विशेषांक में रेल मंत्री, राज्यमंत्री,अध्यक्ष रेलवे बोर्ड तथा अन्य सदस्यगण और क्षेत्रीय रेलों तथा उत्पादन इकाइयों के महाप्रबंधक नियमित लिखते रहते रहे हैं।भारतीय रेल में 1960 के बाद के सारे रेल बजट तथा उन पर सारगर्भित समीक्षाएं विस्तार से प्रकाशित हुई हैं। इस दौर की सभी प्रमुख रेल परियोजनाओं, खास निर्णयों और महत्वपूर्ण घटनाओं को भारतीय रेल में प्रमुखता से कवरेज दिया गया। इसी नाते खास तौर पर अध्येताओं तथा अनुसंधानकर्ताओं के लिए यह पत्रिका एक अनिवार्य संदर्भ भी बन गयी है। 30 दिसंबर 1960 को जब रेल भवन का उद्घाटन किया था उस समय तक भारतीय रेल पत्रिका के पांच अंक प्रकाशित हो चुके थे। रेल भवन बन जाने के बाद भारतीय रेल का संपादकीय पता बदल कर 369, रेल भवन हो गया। भारतीय रेल पत्रिका का पहला विशेषांक रेल सप्ताह अंक 1961 के नाम से अप्रैल 1961 में प्रकाशित किया गया।
बुधवार, 19 अगस्त 2009
मंगलवार, 26 अगस्त 2008
कोंकर्ण रेल का नायाब तोहफा -स्काई बस
अरविंद कुमार सिंह
मडगांव (गोवा ) से ।
देश में प्रौद्योगिकी तथा कार्यकुशलता में बहुत सीमित समय में कीर्तिमान बनानेवाले कोकण रेलवे कारपोरेशन के अभियंताओं ने स्काई बस मेट्रो के सफल परीक्षण के साथ एक नया इतिहास बना दिया है। पूर्णतया स्वदेशी प्रयासों से साकार स्काई बस मेट्रो शहरी यातायात के लिए सबसे बेहतरीन,पर्यावरण हितैषी और सस्ता विकल्प बन सकती है। अगर सब कुछ ठीक रहा और इस परियोजना को उचित समर्थन मिला तो फिर आनेवाले दिनो में यह भारत और दुनिया के तमाम देशों में शहरी यातायात की शक्ल स्काई बस बदल देगी । गोवा के मडग़ांव स्टेशन पर मैने स्काई बस मेट्रो पर सफर भी किया और पाया कियह परियोजना आनेवाले दिनों में निश्चय ही यात्रियों को जाम और भीड़भाड़ तथा लालबत्तियों से निजात दिलाते हुए नयी क्रांति कर सकती है। दिलचस्प बात यह है कि बहुचर्चित और दुनिया के तमाम महानगरों की शान के रूप में देखी जा रही भूमिगत मेट्रो से यह बहुत सस्ती और सुगम है। इस परियोजना में वैसे तो सैकडो़ लोगों का श्रम और मेहनत लगी है,पर धारा के खिलाफ खड़े होकर इसे आकार देने का असली काम देश के जानेमाने इंजीनियर तथा कोकण रेलवे के पूर्व मुखिया बी.राजाराम ने किया है। दिलचस्प बात यह है कि स्वचालित स्काई बस में न ड्राइवर कि जरूरत, न गार्र्ड की ,फिर भी यह 45 से 90 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार पर चल सकती है । आरडीएसओ लखनऊ ने रफ्तार समेत कई पहलुओं पर जांच पड़ताल में इसे कसौटी पर खरा पाया है और रेल संरक्षा आयुक्त ने भी इसे क्लीनचिट दे दी है। स्वचालित दरवाजोंवाली इस बस की एक जोड़ी में 300 सवारियां आ सकती है। यही नहीं इसके लिए बहुत छोटे स्काई स्टेशन कि और सीमित जगह की जरूरत होगी। पूर्व राष्ट्रपति डा.ए.पी.जे.अब्दुल कलाम ,डा.अनिल काकोडकर ,प्रो. पी.रामा राव के साथ रेल संरक्षा आयुक्त सुधीर कुमार इस परियोजना का पहले ही समर्थन कर चुके हैं। इसके बौद्दिक संपदा अधिकार भारत के पास ही हैं और कोकर्ण रेलवे ने इसे पेटेंट करा लिया है।
स्काई बस उन शहरों के लिए वरदान साबित हो सकती है ,जिनकी आबादी 20 लाख या इससे ज्यादा है और जहां 10 किलोमीटर का व्यस्त सड़क मार्ग ऐसा पड़ता हो ,जिस पर रोज दो से तीन लाख लोग यात्रा करते हों। इस बस पर खर्च अन्य प्रौद्योगिकी की तुलना में 20 से 30 फीसदी तक ही आता है और वित्तीय रूप से यह बहुत व्यवहार्य है। इस सुविधा से महज 15 पैसा प्रति किलोमीटर खर्च पर यात्री सफर कर सकते हैं और सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसमें भूमि अधिगृहण का जद्दोजहद नहीं है। कारण यह है कि मौजूदा सड़को पर ही खंबे बना कर स्काई बस चल सकती है। बस टर्मिनल बनाने के लिए 2000 से 4000 वर्ग मीटर इलाके की जरूरत होती है लेकिन सकय बस के लिए शहर के मुख्य क्षेत्र में नही भी जगह मिले तो भी चलेगा। इसमें इमारतों या उद्यानों की तोडफ़ोड़ करने की जरूरत भी नहीं है,और आग जैसे संकट या तोडफ़ोड़ से मुक्त है। अगर कभी यह पटरी से उतर भी जाये तो दुर्घटना नहीं होगी और डिब्बा हवा में ही लटका रहेगा। परियोजना को किसी भी शहर में महज दो साल में आकार दिया जा सकता है। बाढ़ हो या बारिस इसके ट्रेक पर कोई असर नहीं। न कोई प्वाइंट न क्रोसिंग का झंझट और इस पर यह पूर्णतया स्वचालित है। यह अकेली प्रणाली है जो शहरों में ट्रको का आवागमन पूरी तरह मुक्त कर सकती क्योंकि यह कंटेनर भी ढो सकती है। इस प्रणाली में हलके वजनवाले स्काई डिब्बों को बोगी पर रेल गाइड के नीचे चलाया जाता है।
कोंकर्ण रेलवे द्वारा विकसित स्काई बस मेट्रो एक नया,किफायती,पर्यावरण के अनुकूल और द्रतु गति का परिवहन विकल्प देने को अब पूरी तरह तैयार है। एलीवेटेड और भूमिगत मेट्रो की तुलना में स्काई बस बहुत किफायती। इस परियोजना को बहुत सीमित समय और संसाधन में साकार कर दिया है तथा 15 देशों ने इस परियोजना में रूचि दिखायी है। स्काई बस के महज 10-12 किलोमीटर मार्ग से 20 से 30 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को आसानी से सेवा प्रदान की जा सकती है। स्काई बस सबसे सस्ती भी होगी क्योंकि शेयरधारको को मुफ्त तथा अन्य को कितनी भी बार यात्रा के लिए 250 रूपए महीने देने होंगे। प्रदूषण के खतरों से मुक्त स्काई बस में वरिष्ठ नागरिको तथा विकलांगो और बीमारो के लिए लिफ्ट की सुविधा उपलब्ध है। स्काई टाप पर आरामदायक ,व्यापारिक केन्द्र ,रेस्तरां,संचार सुविधाऐं तथा हेल्थ पार्क जैसी सुविधा जुटाने की योजना भी आकर ले रही है। कोंकर्ण रेलवे का मोटा आकलन यह है कि आनेवाले सालों में इस परियोजना पर 30,000 करोड़ रूपए का निवेश होगा और इससे अकेले कोकर्ण रेलवे को रायल्टी के रूप में 8500 करोड़ रूपए की भारी राशि हासिल हो सकती है।
हाल में कोंकर्ण विशेषज्ञों ने मुंबई तथा बंगलूर में स्काई बस मेट्रो का रूट मैप भी बनाया है। यही नहीं अहमदाबाद,चेन्नई,कोयंबतूर,फरीदाबाद,गुडग़ांव,कोलकाता,लखनऊ,नोएडा,पुणे तथा थाणे ने स्काई बस में रूचि दिखायी है। विदेशों में बगदाद,सिंगापुर,शारजाह,दुबई तथा ढ़ाका के साथ मदीना और मक्का जैसी ऐतिहासिक नगरी ने भी रूचि प्रदर्शित की है। कोच्ची स्काई बस परियोजना के लिए केरल सरकार ने 800 करोड़ रूपए मंजूर किए हैं। यह सब इस नाते है क्योंकि स्काई बस प्रति घंटा 40,000 से एक लाख यात्री तक और 750 कंटेनर की ढुलाई कर सकती है। स्काई बस एक भरोसेमंद विकल्प है क्योंकि इसकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह विध्वंश तथा दुर्घटना की संभावना से मुक्त है और इसके रख रखाव में भी बहुत कम खर्च आता है। ऐसा माना जा रहा है कि इसके मार्र्फत शहरी परिवहन में क्रांति हो सकती है। दुनिया की पहली स्काई बस को अमेरिका में पेटेंट कराया गया है।
मडगांव में रखा गया स्काई बस प्रोटोटाइप भारत की इंजीनियरिंग कौशल और क्षमता का अनूठा प्रदर्शन है। इसे महज चार महीनो में तैयार कर दिया गया था। श्री राजाराम की अपील पर भारत अर्थ मूवर्स समेत कई प्रमुख कम्पनिओं ने परियोजना को साकार करने में जबरदस्त दिलचस्पी दिखायी। कई कम्पनिओं ने मगर अभी भी नीतिगत सवाल यह है कि यह किस अधिनियम के तहत आएगी। रेल अधिनियम में स्काई बस का प्रावधान नहीं है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 366 (20) के अधीन स्काई बस मेट्रो ट्राम वे वर्ग में आती है। चूंकि ये वर्तमान सड़को पर म्यूनिसियल सीमा में परिचालित होगी लिहाजा, रेल अधिनियम में संशोधन करना होगा। कोंकर्ण रेलवे के आकलन के मुताबिक कुल 5000 करोड़ रूपए के निवेश से मुंबई में 60 लाख लोगों को सफर कराया जा सकता है। यही नहीं सात साल में सारी परियोजना लागत निकल सकती है। स्काई बस से देश में रोज 2000 टन कार्बन उत्सर्जन को रोका जा सकता है।
इसकी सबसे बडी़ खूबी यह भी है कि इसके सारे कलपुजे स्वदेशी हैं। सीमित समय में बिना किसी सरकारी समर्थन के यह साकार हो सकता है। यहां उल्लेखनीय है कि 15 जून 2001 को भारत रत्न डा.कलाम ने साफ कहा था कि स्काई बस मेट्रो का प्रस्ताव तकनीकी रूप से जांचा परखा हुआ है और इसके कार्यक्रम और व्यापारिक महत्व और संभावनाओं को देखते हुए इसे एक अभियान के रूप में लेना चाहिए।
स्काई बस की दो लाइनें एक खंभे पर ही दो तरफ पूरी सुरक्षा से चल सकती हैं। मेट्रो रेल की तरह इसे बहुत जमीन नहीं चाहिए। यह सड़क किनारे थोड़े से जमीन में ही खम्भा बना अपना काम चला सकती है। बस के साथ स्काई कंटेनर भी चल सकते हैं। स्काई बस की तरह ही स्काई प्रौद्योगिकी ,बंदरगाहों के लिए भी बहुत उपयोगी और वरदान साबित हो सकती है। इससे बंदरगाहों पर 10 गुना तेजी से लोडिंग और अनलोडिंग की जा सकती है और फेरों में सुधार किया जा सकता है। टाटा और एस्सार ने इस परियोजना के लिए मुफ्त में स्टील दिया और जिंदल ने भी महज 50 फीसदी लागत में पटरियां प्रदान की है । बी.राजाराम के मुताबिक शहरी यातायात के लिए अपेक्षित स्पीड के मानदंडो पर भी यह बस खरी उतर चुकी है। लेकिन जहां तक स्पीड का सवाल है,तो आप स्काई बस 250 किलोमीटर पर भी चल सकती है। पहाडो़ पर रेलवे का यह विकल्प बन सकती है। आगे कोंकर्ण रेल की योजना हर प्रमुख शहर मे एक लाइसेंस जारी करने की है। इस परियोजना से भविष्य में भारी रायल्टी मिलने की उम्मीद है। देश में एक दर्जन बड़े शहरों के लिए दर्जन भर कंपनी सामने आयी हैं। पूना तथा कोच्ची ने भी इस परियोजना में खासी दिलचस्पी ली है। पर असली सवाल यह है कि कोंकर्ण रेल जैसी इच्छाशीलता क्या भारत सरकार और राज्य सरकारें भी दिखा सकेंगी ?
गुरुवार, 21 अगस्त 2008
लालू यादव -विश्वस्तरीय रेल बनाने का इरादा
अरविंद कुमार सिंहनई दिल्ली .मेरा रेल बजट मंहगाई के मुंह पर तमाचा है। आम आदमी को ध्यान में रखकर हमने किराया भाड़ा बढ़ाना तो दूर उलटे इसे घटा दिया है। अगर रेलवे ने माल और यात्री भाड़ा बढ़ा दिया होता तो कल्पना क रिए मंहगाई का क्या हाल होता। मगर हम लोगों ने तमाम दबाव के बावजूद ऐसा नहीं किया है। एक इंटरव्यू में रेल मंत्री ने तमाम सवालों के जवाब खुलकर दिए। उन्होने कहा , रेल बजट सामाजिक न्याय को ध्यान में रख कर बना है और तमाम पिछड़े और गरीब इलाको के कायाक ल्प का तानाबाना इसमें बुना गया है। इन प्रयासों से भारतीय रेल को विश्वस्तरीय सुविधाओं से लैस बनाने में मदद मिलेगी तथा जो यात्री और माल हमसे दूर होते जा रहे थे वे वापस लौटेंगे। यहां प्रस्तुत है रेल मंत्री से बातचीत के प्रमुख अंश-
आपने इस रेल बजट में भी जो कुछ किया है,वह लोक लुभावना दिखता है। इस बजट के पीछे आपका कौन सा नजरिया या सोच दृष्टिगत होती है ?
जवाब- अगर हम उद्योग धंधों या जनता की जेब से और पैसे किराये के रूप में ले लेते तो जरूरी नहीं था िक इससे ही रेलवे का कायाकल्प हो जाता। किराया बढ़ता तो आम आदमी पर ही और मार पड़ती। हम लोग जनता के ही नुमाइंदे हैं और चाहते हैं लोगों पर उतना ही भार लादा जाये जितना उनकी क्षमता हो। सामाजिक न्याय और गरीबो को लक्ष्य बना क र और इसी भाव को केद्रित कर मेरा रेल बजट बना है। हम किसी व्यक्ति या किसी इलाके से भेदभाव नहीं क रना चाहते हैं। हमें तो विरासत में रेलवे खस्ता हाल में मिली थी । उसको ठीक करने और बेहतर शक्ल बनाने की कोशिश कर रहा हूं। जो कुछ किया जा रहा है वह लोगों के सामने है। हमारा रेल बजट मंहगाई के मुंह पर तमाचा है। बिना किराया भाड़ा बढ़ाए अगर हमारा सरप्लस 20,000 करोड़ रू.से ज्यादा हो गया ,तो यह किसी जादू की छड़ी से नहीं काम करने से हुआ है। हमने सभी वर्गो के हित को ध्यान में रखा है गरीब, किसान ,विक लांग, बेरोजगार युवा, महिलाएं,सीनियर सिटिजन और हर नागरिक हमारे एजेंड़े में बजट तैयार करते समय रहा है। मैं एक आम आदमी और किसान मजदूर का बेटा हूं। स्वाभाविक तौर पर इनके बारे में सोचूंगा।
सवाल- तमाम आर्थिक विशेषज्ञ कह रहे हैं िक लाभ हानि के गणित को विचारे बिना जितनी भारी राशि रेलवे तमाम परियोजनाओं पर लगा रही है,उससे रेलवे की दीर्घकालिक सेहत पर बुरा असर तो नहीं पड़ेगा?
जवाब-देखिए राष्ट्रपतिजी ने भी रेल मंत्रालय के कार्यकरण की तारीफ की है। इससे बड़ा और क्या सर्र्टिफिकेट हो सक ता है। रही बात अर्थशास्त्रियों की तो इसमें मुझे समझदारी नहीं दिखती िक आप भाड़ा बढ़ा दें और आपके हिस्से में माल ही न आए। सभी जानते हैं,रेलवे ट्रकों से सस्ता है। हमने थोड़ा अक ल लगा कर जो उपाय क र दिए है, ,उसका असर साफ दिख रहा है और माल यातायात में कितनी ज्यादा बढोत्तरी हो रही है। हमारा लागत खर्च (आपरेटिंग रेसियो) दुनिया में सबसे बेहतरीन स्तर पर आ गया है। हमने रिकार्ड लदान की ,रिकार्ड सवारियां रेल के पास आ रही हैं।
सवाल-आपने 11वीं योजना के दौरान भारी भरकम निवेश का जो तानाबाना बुना है उसे साकार करने के लिए संसाधनों की उपलब्धता भी एक अहम पक्ष है। दुर्गम इलाको में निजी क्षेत्र क्या दिलचस्पी लेगा?जवाब-पब्लिक प्राइवेट पार्र्टनरशिप निश्चय ही रंग लाएगी। मैं अकेले डिडिकेटेड फ्रेट कारिडोर की बात अगर क रूं तो इसी क्षेत्र में हमें काफी उम्मीद है। पूर्वी और पश्चिमी कारिडोर बनाने में 25,000 करोड़ रू. खर्च होंगे। हम चाहते हैं ,इस पर काम युद्दस्तर पर हो। हमारे आंतरिक साधन है,लोन है और मदद के लिए हम प्रधानमंत्री से वार्ता करेगे। दुनिया में लोन लेकर ज्यादा से ज्यादा काम हो रहे हैं,पर हम अपना भी काफी पैसा लगाएंगे। यह कारिडोर बना तो बाकी लाइनों पर जो भारी दबाव है वह कम होगा। कारिडोर बनने के बाद लोग लंबी दूरी में माल ट्रको से क्यों भेजेंगे,हमारा भाड़ा तो ट्रको से भी क म है। सड़को पर भीड़ भी क म होगी और हमारी रेल लाइनो पर भी आज जैसा भारी दबाव नहीं होगा। वह पूरी तरह विद्युतीकृत लाइन होगी और हरियाणा पंजाब से लेक र कई राज्यों यह परियोजना बहुत भला करेगी । लुधियाना,मुंबई, दिल्ली, चेन्नई और क ई बंदरगाहों आदि पर इस परियोजना से कायाकल्प हो जाएगा। इन बातों को ही ध्यान में रख क र हमने 11 वीं योजना के अंत तक माल लदान 1100 मिलियन टन तथा यात्रियों को संख्या बढ़ा कर 840 करोड़ करने करने का लक्ष्य रखा है। ये लक्ष्य पूरे होंगे।
सवाल-यह कायाकल्प तो अपनी जगह है,देश की मुख्यधारा से क टे इलाको को रेल लाइन से जोडऩे , लंबित परियोजनाओं को साकार करने तथा क्षेत्रीय असंतुलन मिटाने की दिशा में क्या हो रहा है?
जवाब-गरीब पिछड़े और उपेक्षित इला·के हमारे एजेंडे का हिस्सा है। हर राज्य हमारे लिए महत्वपूर्ण है। इन इलाको में आधारभूत ढांचे का विकास हमारी प्राथमिकता है। हम लोग योजनाबद्द तरीके से इस पर काम कर रहे हैं। नयी लाइन,आमान परिवर्तन, विद्युतीकरण से लेकर यात्री सुविधाओं सबमें पिछड़े इलाको पर हमारा ध्यान है। हमारी सोच में अगर गरीब और दलित पिछड़े लोग और इलाके न होते तो काठ की पटरी पर दशको से यात्रा क र रहे लोगों की सुविधा के लिए हम कु शन की गद्दी की बात न सोचते। औरतों को लोअर सीट , विक लांगो और बूढ़े लोगों के लिए विशेष सुविधा की बात हम क्यों क रते। सब्जीवाले या दूध विकरेताओं के लिए अलग से कोच की बात भी हमारी इसी परिकल्पना का हिस्सा हैं। इससे मुसाफिरों को काफी राहत मिलेगी। उपनगरीय यात्रियों की सुविधा भी हम बढ़ा रहे हैं। हम सभी वर्ग और हर नागरिक के कल्याण की बात सोचते हैं। मैं मानता हूं ,आधारभूत ढांचे के विकास की उपेक्षा लंबे समय तक हुई। रेलवे भी इससे अछूता नहीं रहा। पर लाभ के साथ सामाजिक दायित्व भी है। हम कोई भेदभाव नहीं करने देंगे। हम भारतीय रेल को विश्व स्तरीय बनाना चाहते हैं। इसी को ध्यान में रख कर मधेपुरा,डालमियानगर से लेकर रायबरेली जैसे पिछड़े इलाके में हम रेलवे कोच,वैगन, पहिया तथा धुरा जैसे कारखाने लगाने जा रहे हैं। गरीब रथ और तमाम रेलगाडियां गरीब और पिछड़े इलाको में हम चलाने जा रहे हैं। इन सबसे भारतीय रेल की कायापलट होगी।
सवाल-इस कायापलट का श्रेय आप किसको देते हैं?
जवाब-मैं श्रेय की राजनीति में नहीं पड़ता। हमारे 16 लाख रेल क र्मचारी ही हमारी बुनियाद है। अच्छा काम हो रहा है तो मैं इसका श्रेय भी मैं रेल कर्मचारी भाइयों को ही देता हूं। उनके कल्याण की दिशा में भी हमने कई क दम उठाए हैं और जैसे जैसे काम आगे बढ़ेगा,वे भी आगे बढ़ेगे।
सवाल-हाल में कई हादशों में यह साफ हुआ fक रेलवे आतंक वादियों के निशाने पर है। ऐसे में यात्रियों की विशेष सुरक्षा की दिशा में क्या क दम उठाने जा रहे हैं?
जवाब-इस दिशा में हम सजग हैं । तमाम नए सुरक्षा उपाय हो रहे है। आरपीएफ में 8000 रिक्त पदों को भरने,उनको साजो सामान से लैस करने, क्लोज सर्किट टीवी समेत सारे उपाय हो रहे हैं। डाग स्क्वायट बढाए जा रहे हैं,जबकि संवेदनशील मंडलों में विस्फोटको को खोजनेवाली मशीनें,मेटल डिटेक्टर और वीडियो कैमरे लग रहे हैं। यात्रियों की जानमाल की हिफाजत में हम अपने स्तर से कोई कोई कमी नहीं आने देगें। रेल संरक्षा की दिशा में भी तेजी से काम चल रहा है इसी नाते यातायात में भारी बढ़ोत्तरी होने के बावजूद रेल दुर्घटनाओं में बहुत कमी आयी है। रेल संरक्षा निधि के अधीन हो रहे सारे कार्य मार्च 2008 तक लक्ष्य बना कर पूरे कर लिए जाएंगे।
सवाल-अनुसंधान विकास तथा गति के मामले में बाकी रेलों की तुलना में भारतीय रेल अभी पीछे हैं। उच्च गति की दिशा में क्या नए कदम उठने जा रहे हैं?
जवाब-समय जैसे जैसे बदलता है,चेहरे भी बदलते हैं। हमारा प्रयास है िक 2-3 घंटे में चुनिदां खंडों पर ऐसी तेज रफ्तार गाडिय़ां चलें जो मुसाफिरों को महज दो तीन घंटे में गंतव्य तक पहुंचा दें। हमारे चुंनिंदा स्टेशन विश्व श्रेणी के बनें। ऐसे 600 स्टेशन हम हाथ में ले रहे हैं। भविष्य का खाका सबकी मदद से हम खींच रहे हैं। भारतीय रेल की एक मजबूत विश्वस्तरीय छवि बन रही है।