अरविंद कुमार सिंह
मडगांव (गोवा ) से ।
देश में प्रौद्योगिकी तथा कार्यकुशलता में बहुत सीमित समय में कीर्तिमान बनानेवाले कोकण रेलवे कारपोरेशन के अभियंताओं ने स्काई बस मेट्रो के सफल परीक्षण के साथ एक नया इतिहास बना दिया है। पूर्णतया स्वदेशी प्रयासों से साकार स्काई बस मेट्रो शहरी यातायात के लिए सबसे बेहतरीन,पर्यावरण हितैषी और सस्ता विकल्प बन सकती है। अगर सब कुछ ठीक रहा और इस परियोजना को उचित समर्थन मिला तो फिर आनेवाले दिनो में यह भारत और दुनिया के तमाम देशों में शहरी यातायात की शक्ल स्काई बस बदल देगी । गोवा के मडग़ांव स्टेशन पर मैने स्काई बस मेट्रो पर सफर भी किया और पाया कियह परियोजना आनेवाले दिनों में निश्चय ही यात्रियों को जाम और भीड़भाड़ तथा लालबत्तियों से निजात दिलाते हुए नयी क्रांति कर सकती है। दिलचस्प बात यह है कि बहुचर्चित और दुनिया के तमाम महानगरों की शान के रूप में देखी जा रही भूमिगत मेट्रो से यह बहुत सस्ती और सुगम है। इस परियोजना में वैसे तो सैकडो़ लोगों का श्रम और मेहनत लगी है,पर धारा के खिलाफ खड़े होकर इसे आकार देने का असली काम देश के जानेमाने इंजीनियर तथा कोकण रेलवे के पूर्व मुखिया बी.राजाराम ने किया है। दिलचस्प बात यह है कि स्वचालित स्काई बस में न ड्राइवर कि जरूरत, न गार्र्ड की ,फिर भी यह 45 से 90 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार पर चल सकती है । आरडीएसओ लखनऊ ने रफ्तार समेत कई पहलुओं पर जांच पड़ताल में इसे कसौटी पर खरा पाया है और रेल संरक्षा आयुक्त ने भी इसे क्लीनचिट दे दी है। स्वचालित दरवाजोंवाली इस बस की एक जोड़ी में 300 सवारियां आ सकती है। यही नहीं इसके लिए बहुत छोटे स्काई स्टेशन कि और सीमित जगह की जरूरत होगी। पूर्व राष्ट्रपति डा.ए.पी.जे.अब्दुल कलाम ,डा.अनिल काकोडकर ,प्रो. पी.रामा राव के साथ रेल संरक्षा आयुक्त सुधीर कुमार इस परियोजना का पहले ही समर्थन कर चुके हैं। इसके बौद्दिक संपदा अधिकार भारत के पास ही हैं और कोकर्ण रेलवे ने इसे पेटेंट करा लिया है।
स्काई बस उन शहरों के लिए वरदान साबित हो सकती है ,जिनकी आबादी 20 लाख या इससे ज्यादा है और जहां 10 किलोमीटर का व्यस्त सड़क मार्ग ऐसा पड़ता हो ,जिस पर रोज दो से तीन लाख लोग यात्रा करते हों। इस बस पर खर्च अन्य प्रौद्योगिकी की तुलना में 20 से 30 फीसदी तक ही आता है और वित्तीय रूप से यह बहुत व्यवहार्य है। इस सुविधा से महज 15 पैसा प्रति किलोमीटर खर्च पर यात्री सफर कर सकते हैं और सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसमें भूमि अधिगृहण का जद्दोजहद नहीं है। कारण यह है कि मौजूदा सड़को पर ही खंबे बना कर स्काई बस चल सकती है। बस टर्मिनल बनाने के लिए 2000 से 4000 वर्ग मीटर इलाके की जरूरत होती है लेकिन सकय बस के लिए शहर के मुख्य क्षेत्र में नही भी जगह मिले तो भी चलेगा। इसमें इमारतों या उद्यानों की तोडफ़ोड़ करने की जरूरत भी नहीं है,और आग जैसे संकट या तोडफ़ोड़ से मुक्त है। अगर कभी यह पटरी से उतर भी जाये तो दुर्घटना नहीं होगी और डिब्बा हवा में ही लटका रहेगा। परियोजना को किसी भी शहर में महज दो साल में आकार दिया जा सकता है। बाढ़ हो या बारिस इसके ट्रेक पर कोई असर नहीं। न कोई प्वाइंट न क्रोसिंग का झंझट और इस पर यह पूर्णतया स्वचालित है। यह अकेली प्रणाली है जो शहरों में ट्रको का आवागमन पूरी तरह मुक्त कर सकती क्योंकि यह कंटेनर भी ढो सकती है। इस प्रणाली में हलके वजनवाले स्काई डिब्बों को बोगी पर रेल गाइड के नीचे चलाया जाता है।
कोंकर्ण रेलवे द्वारा विकसित स्काई बस मेट्रो एक नया,किफायती,पर्यावरण के अनुकूल और द्रतु गति का परिवहन विकल्प देने को अब पूरी तरह तैयार है। एलीवेटेड और भूमिगत मेट्रो की तुलना में स्काई बस बहुत किफायती। इस परियोजना को बहुत सीमित समय और संसाधन में साकार कर दिया है तथा 15 देशों ने इस परियोजना में रूचि दिखायी है। स्काई बस के महज 10-12 किलोमीटर मार्ग से 20 से 30 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को आसानी से सेवा प्रदान की जा सकती है। स्काई बस सबसे सस्ती भी होगी क्योंकि शेयरधारको को मुफ्त तथा अन्य को कितनी भी बार यात्रा के लिए 250 रूपए महीने देने होंगे। प्रदूषण के खतरों से मुक्त स्काई बस में वरिष्ठ नागरिको तथा विकलांगो और बीमारो के लिए लिफ्ट की सुविधा उपलब्ध है। स्काई टाप पर आरामदायक ,व्यापारिक केन्द्र ,रेस्तरां,संचार सुविधाऐं तथा हेल्थ पार्क जैसी सुविधा जुटाने की योजना भी आकर ले रही है। कोंकर्ण रेलवे का मोटा आकलन यह है कि आनेवाले सालों में इस परियोजना पर 30,000 करोड़ रूपए का निवेश होगा और इससे अकेले कोकर्ण रेलवे को रायल्टी के रूप में 8500 करोड़ रूपए की भारी राशि हासिल हो सकती है।
हाल में कोंकर्ण विशेषज्ञों ने मुंबई तथा बंगलूर में स्काई बस मेट्रो का रूट मैप भी बनाया है। यही नहीं अहमदाबाद,चेन्नई,कोयंबतूर,फरीदाबाद,गुडग़ांव,कोलकाता,लखनऊ,नोएडा,पुणे तथा थाणे ने स्काई बस में रूचि दिखायी है। विदेशों में बगदाद,सिंगापुर,शारजाह,दुबई तथा ढ़ाका के साथ मदीना और मक्का जैसी ऐतिहासिक नगरी ने भी रूचि प्रदर्शित की है। कोच्ची स्काई बस परियोजना के लिए केरल सरकार ने 800 करोड़ रूपए मंजूर किए हैं। यह सब इस नाते है क्योंकि स्काई बस प्रति घंटा 40,000 से एक लाख यात्री तक और 750 कंटेनर की ढुलाई कर सकती है। स्काई बस एक भरोसेमंद विकल्प है क्योंकि इसकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह विध्वंश तथा दुर्घटना की संभावना से मुक्त है और इसके रख रखाव में भी बहुत कम खर्च आता है। ऐसा माना जा रहा है कि इसके मार्र्फत शहरी परिवहन में क्रांति हो सकती है। दुनिया की पहली स्काई बस को अमेरिका में पेटेंट कराया गया है।
मडगांव में रखा गया स्काई बस प्रोटोटाइप भारत की इंजीनियरिंग कौशल और क्षमता का अनूठा प्रदर्शन है। इसे महज चार महीनो में तैयार कर दिया गया था। श्री राजाराम की अपील पर भारत अर्थ मूवर्स समेत कई प्रमुख कम्पनिओं ने परियोजना को साकार करने में जबरदस्त दिलचस्पी दिखायी। कई कम्पनिओं ने मगर अभी भी नीतिगत सवाल यह है कि यह किस अधिनियम के तहत आएगी। रेल अधिनियम में स्काई बस का प्रावधान नहीं है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 366 (20) के अधीन स्काई बस मेट्रो ट्राम वे वर्ग में आती है। चूंकि ये वर्तमान सड़को पर म्यूनिसियल सीमा में परिचालित होगी लिहाजा, रेल अधिनियम में संशोधन करना होगा। कोंकर्ण रेलवे के आकलन के मुताबिक कुल 5000 करोड़ रूपए के निवेश से मुंबई में 60 लाख लोगों को सफर कराया जा सकता है। यही नहीं सात साल में सारी परियोजना लागत निकल सकती है। स्काई बस से देश में रोज 2000 टन कार्बन उत्सर्जन को रोका जा सकता है।
इसकी सबसे बडी़ खूबी यह भी है कि इसके सारे कलपुजे स्वदेशी हैं। सीमित समय में बिना किसी सरकारी समर्थन के यह साकार हो सकता है। यहां उल्लेखनीय है कि 15 जून 2001 को भारत रत्न डा.कलाम ने साफ कहा था कि स्काई बस मेट्रो का प्रस्ताव तकनीकी रूप से जांचा परखा हुआ है और इसके कार्यक्रम और व्यापारिक महत्व और संभावनाओं को देखते हुए इसे एक अभियान के रूप में लेना चाहिए।
स्काई बस की दो लाइनें एक खंभे पर ही दो तरफ पूरी सुरक्षा से चल सकती हैं। मेट्रो रेल की तरह इसे बहुत जमीन नहीं चाहिए। यह सड़क किनारे थोड़े से जमीन में ही खम्भा बना अपना काम चला सकती है। बस के साथ स्काई कंटेनर भी चल सकते हैं। स्काई बस की तरह ही स्काई प्रौद्योगिकी ,बंदरगाहों के लिए भी बहुत उपयोगी और वरदान साबित हो सकती है। इससे बंदरगाहों पर 10 गुना तेजी से लोडिंग और अनलोडिंग की जा सकती है और फेरों में सुधार किया जा सकता है। टाटा और एस्सार ने इस परियोजना के लिए मुफ्त में स्टील दिया और जिंदल ने भी महज 50 फीसदी लागत में पटरियां प्रदान की है । बी.राजाराम के मुताबिक शहरी यातायात के लिए अपेक्षित स्पीड के मानदंडो पर भी यह बस खरी उतर चुकी है। लेकिन जहां तक स्पीड का सवाल है,तो आप स्काई बस 250 किलोमीटर पर भी चल सकती है। पहाडो़ पर रेलवे का यह विकल्प बन सकती है। आगे कोंकर्ण रेल की योजना हर प्रमुख शहर मे एक लाइसेंस जारी करने की है। इस परियोजना से भविष्य में भारी रायल्टी मिलने की उम्मीद है। देश में एक दर्जन बड़े शहरों के लिए दर्जन भर कंपनी सामने आयी हैं। पूना तथा कोच्ची ने भी इस परियोजना में खासी दिलचस्पी ली है। पर असली सवाल यह है कि कोंकर्ण रेल जैसी इच्छाशीलता क्या भारत सरकार और राज्य सरकारें भी दिखा सकेंगी ?
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